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कैसी दिव्य तुम्हारी ममता / हनुमानप्रसाद पोद्दार

कैसी दिव्य तुम्हारी ममता, कैसा दिव्य तुम्हारा प्रेम।
तनिक उदास देख मुझको, तुम गल जाते ज्यों तापित हेम॥
सब भगवान भूल, तुरत प्रिय! करने लगते करुण विलाप।
मुझ-सी अति नगण्य के कारण कर उठते तुम सहज प्रलाप॥
कैसा मधुर, अनन्त स्नेह-सागर लहराता उर अन्तर।
मैं हो गयी धन्य अब पाकर उसका एक पुण्य सीकर॥
कैसे अपना भाग्य बखानूँ, कैसे हृदय दिखाऊँ खोल।
पाया मैंने दुर्लभ अतिशय प्रेम तुम्हारा यह अनमोल॥
रहे सुरक्षित मेरा उर में, सुखद गोद में प्यारा स्थान।
करती रहूँ सदा अनुभव मैं प्रियतम का प्रिय संग महान॥