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कैसी है अब माँ / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

किसको चिन्ता किस हालत में
कैसी है अब माँ

सूनी आँखों में पलती हैं
धुंधली आशाएँ
हावी होती गईं फ़र्ज़ पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन काग़ज़ का
वैसी है अब माँ

नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ

फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ