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कैसे आए वर्ष / अनातोली परपरा

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आज मन हुआ मेरा फिर से कुछ गाने का
फिर से मुस्कराने का
सिर पर मंडराती मौत को डरा कर भगाने का
फिर से हँसने औ' हँसाने का

चिन्ता नहीं की कुछ मैंने अपनी तब
जब सेवा की इस देश की
मैं झेल गया सब तकलीफ़ें, पीड़ा
इस जीवन की, परिवेश की

पर अब समय यह कैसा आया
कैसे आए वर्ष
छीन ले गए जीवन का सुख सब
छीन ले गए हर्ष

श्रम करता मैं अब भी बेहद
अब भी तोड़ूँ हाड़
देश बँट गया अब कई हिस्सों में
हो गया पन्द्रह फाड़

भूख, तबाही और कष्ट ही अब
जन की हैं पहचान
औ' सुख-विलास में मस्त दिखें सब
क्रेमलिन के शैतान

दिन वासन्ती फिर से आया है
कई वर्षों के बाद
जाग उठा है देश यह मेरा फिर
बीत रही है रात

मेहनत गुलाम-सी करता हूँ मैं
पर दास नहीं हूँ मैं
महाशक्ति बनेगा रूस यह फिर से
हताश नहीं हूँ मैं

रचनाकाल : 1996