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कैसे चैन लहे / रामगोपाल 'रुद्र'

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कैसे चैन लहे मन-मीन?

पनघट पर काजल की तूली
रेख रही वज्र की गोधूली;
विद्रुम-तट पर पसर ढरककर
जमुना अन्‍तर्लीन!

बंसी में अँटकी अभिलाषा;
बूझे कौन विकल जलभाषा?
कसती जाती शिथिल सगुणता;
कंठ करो स्वाधीन!