भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैसो च भंडारी तेरा मलेथ? / गढ़वाली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कैसो च भंडारी तेरा मलेथ ?

देखी भलौ ऎन सैवो मेरा मलेथ

लकदी गूल मेरा मलेथ

गाँऊँ मूड़ को घर मेरा मलेथ

पालंगा की बाड़ी मेरा मलेथ

लासणा की क्यारी मेरा मलेथ

गाइयों की गोठ्यार मेरा मलेथ

भैंसी को खुरीक मेरा मलेथ

बांदू का लड़क मेरा मलेथ

बैखू का ढसक मेरा मलेथ


भावार्थ


--'ओ भंडारी राजपूत, कैसा है तेरा 'मलेथ' गाँव?

देखने में भला लगता है, साहबो, मेरा मलेथ ।

ढलकती नहीं है वहाँ, मेरा मलेथ ।

गाँव की निचान में घर है मेरा, मेरा मलेथ ।

पालक की बाड़ी है, मेरा मलेथ ।

लहसुन की क्यारी है, मेरा मलेथ ।

गौओं की गोठ है, मेरा मलेथ ।

भैंसों की भीड़ है, मेरा मलेथ ।

कुमारियों की टोली है, मेरा मलेथ ।

वीरों का धक्कम-धक्का है, मेरा मलेथ ।