भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कै दिन मैना सालों बिटिन / अनूप सिंह रावत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कै दिन मैना सालों बिटिन अपडा मैत्या मुल्क नि गायी
धारा मंगरूं, बांजा जड्यूं कु ठंडो मीठो पाणी नि प्यायी...

कनि होली व मेरी कुड़ी पूंगुडी मेरी छन्नी छज्जा तिबारी
जौं बाटों मा हिटणु सीखू कब हिटलू ऊमा फिर सरासारी..

झणी कब बिटि नि देखि मिन चैता कु फूल्यों लाल बुरांश
घुघूती की घुर घुर, कफुआ, मोर, बणों मा बंसदी हिलांश..

किन्गोड़ा हिंशोला नि खायी, बेडू, मेलु, तिमला की दाणी
छंछ्या पल्यो बाड़ी, प्याज अर कंडली की भुज्जी स्वाणी..

बांदो का गीत नि सूणा, बाजूबंद, थड्या, चौंफला ऊ गीत
थाडो मा नाचणा की कनि प्यारी च व मेरा मुल्क की रीत..

उ सारयूं मा काम काज, रोपणी, बाणी कमाणी नि कायी
छैलू मा बैठी की, प्याज पिरान्यां कोदा कु रोटु नि खायी..

ब्यो बरात्यों मा पंगत मा बैठी की खाणु, अर रांसू मंडाण
स्याल्यूं का दगडी ठठा मजाक, अप दगडी उ खूब नचाण..

झणी कब बिटि की गैल्यों गौं का थोला मेलु मा नि गायी
दगिद्यों दगडी पात मा ताती - २ जलेबी पकोड़ी नि खायी..

कब जौंलू मी देवभूमि मा अपड़ा स्वाणा रौंतेला गढ़ देश
नि रयेंदु अब यख ता, विराणु सी लगदु गैल्यों यु परदेश..

कै दिन मैना सालों बिटिन अपडा मैत्या मुल्क नि गायी
धारा मंगरूं, बांजा जड्यूं कु ठंडो मीठो पाणी नि प्यायी...।