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"कोंपल तक झुलसा गई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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युगों- युगों तक भी रहे,अपना यह सम्बन्ध।
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गों- युगों तक भी रहे,अपना यह सम्बन्ध।
 
करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।।
 
करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।।
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कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ।
 
कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ।
 
जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।।
 
जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।।
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पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात।
 
पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात।
 
छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात।
 
छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात।
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तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल।
 
तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल।
 
द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल।
 
द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल।
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तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान।
 
तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान।
 
पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान।
 
पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान।
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कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग।
 
कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग।
 
झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।।
 
झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।।
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हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम।
 
हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम।
 
इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम।
 
इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम।
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फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध।
 
फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध।
 
बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।।
 
बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।।
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क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग।
 
क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग।
 
निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।।
 
निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।।
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खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।।
 
खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।।
 
शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।।
 
शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।।
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चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल।
 
चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल।
 
धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।।
 
धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।।
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चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार।
 
चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार।
 
दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार।
 
दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार।
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आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल।
 
आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल।
 
शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।।
 
शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।।
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मन में घुमड़े दर्द  जो,बहे नयन जलधार।
 
मन में घुमड़े दर्द  जो,बहे नयन जलधार।
 
सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।।
 
सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।।

20:18, 14 मई 2019 का अवतरण


91
गों- युगों तक भी रहे,अपना यह सम्बन्ध।
करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।।
92
कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ।
जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।।
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पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात।
छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात।
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तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल।
द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल।
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तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान।
पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान।
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कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग।
झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।।
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हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम।
इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम।
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फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध।
बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।।
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क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग।
निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।।
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खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।।
शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।।
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चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल।
धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।।
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चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार।
दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार।
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आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल।
शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।।
104
मन में घुमड़े दर्द जो,बहे नयन जलधार।
सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।।