"कोंपल तक झुलसा गई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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− | + | 91 | |
− | + | गों- युगों तक भी रहे,अपना यह सम्बन्ध। | |
करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।। | करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।। | ||
− | + | 92 | |
कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ। | कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ। | ||
जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।। | जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।। | ||
− | + | 93 | |
पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात। | पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात। | ||
छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात। | छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात। | ||
− | + | 94 | |
तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल। | तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल। | ||
द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल। | द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल। | ||
− | + | 95 | |
तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान। | तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान। | ||
पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान। | पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान। | ||
− | + | 96 | |
कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग। | कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग। | ||
झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।। | झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।। | ||
− | + | 97 | |
हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम। | हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम। | ||
इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम। | इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम। | ||
− | + | 98 | |
फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध। | फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध। | ||
बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।। | बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।। | ||
− | + | 99 | |
क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग। | क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग। | ||
निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।। | निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।। | ||
− | + | 100 | |
खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।। | खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।। | ||
शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।। | शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।। | ||
− | + | 101 | |
चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल। | चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल। | ||
धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।। | धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।। | ||
− | + | 102 | |
चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार। | चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार। | ||
दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार। | दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार। | ||
− | + | 103 | |
आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल। | आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल। | ||
शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।। | शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।। | ||
− | + | 104 | |
मन में घुमड़े दर्द जो,बहे नयन जलधार। | मन में घुमड़े दर्द जो,बहे नयन जलधार। | ||
सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।। | सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।। |
20:18, 14 मई 2019 का अवतरण
91
गों- युगों तक भी रहे,अपना यह सम्बन्ध।
करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।।
92
कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ।
जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।।
93
पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात।
छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात।
94
तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल।
द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल।
95
तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान।
पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान।
96
कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग।
झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।।
97
हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम।
इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम।
98
फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध।
बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।।
99
क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग।
निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।।
100
खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।।
शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।।
101
चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल।
धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।।
102
चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार।
दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार।
103
आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल।
शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।।
104
मन में घुमड़े दर्द जो,बहे नयन जलधार।
सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।।