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6191युगोंगों- युगों तक भी रहे,अपना यह सम्बन्ध।
करें टूटकर प्यार हम,बस इतना अनुबन्ध।।
6292
कठपुतली करतार की,कुछ नहीं अपने हाथ।
जो दिल में दिन रात हैं,उनका दुर्लभ साथ।।
6393
पूरी हो पाती नहीं,मन की कोई बात।
छोर पकड़ पाते तनिक,हो जाता आघात।
6494
तन तो कोसों दूर है,मन को यही मलाल।
द्वारे से ही चल दिए,भूल गए सब ख़्याल।
6595
तन -मन घायल पीर से,पग भी लहूलुहान।
पथ में तुम मिलते नहीं,हो जाता अवसान।
6696
कोंपल तक झुलसा गई,जंगल की वो आग।
झुलसे तरु वे साथ में,जो भी थे बेदाग़।।
6797
हमने खुद पर ले लिये,जग भर के इल्ज़ाम।
इसके आगे कौन धन,लिख लूँ अपने नाम।
6898
फूलों की मुस्कान पर,लगें रोज़ प्रतिबन्ध।
बोलो उस उद्यान से.कौन करे अनुबन्ध।।
6999
क्रोध हवन करता जहाँ,उगले हरदम आग।
निर्मल आँचल पर लगें, लाख वहाँ पर दाग़ ।।
70100
खुशबू आँगन में बसी,दिया न दो पल ध्यान।।
शब्द-बाण बौछार से,कर डाला अवसान।।
71101
चन्दन तुमको था दिया,रखना खूब सँभाल।
धुँआ-धुँआँ उसको किया,रब को यही मलाल।।
72102
चट्टानों को जोड़के, निर्मित की दीवार।
दो शब्दों की चोट से,टूट गए घर -बार।
73103
आँगन में निशदिन खिलें,खुशबू लेकर फूल।
शीतल जल से सींचना,चुनकर चुभते शूल।।
74104
मन में घुमड़े दर्द जो,बहे नयन जलधार।
सीने से आकर लगो,पोंछूँगा हर बार।।