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कोई इंजीनियर ऐसा भी / अशेष श्रीवास्तव

कोई इंजीनियर
ऐसा भी हो दोस्तों...
जो बिगडे सम्बंधों को
प्रेम से सुधार दे...
नफरतों की दीवारें
प्यार के रस्तों में बदल दे...
घृणा की आग को
स्नेह के सिंचन से बुझा दे...
अहम् की दूरियों को
प्रेम के सेतु से पाट दे...
गलतफहमियों के दलदल को पूर के
विश्वास की मज़बूत इमारत बना दे...
कोई ऐसा फेवीकाल बनाए कि
प्रेम सम्बंध टूट ना पाएँ...
कोई ऐसा सॉफ्टवेयर बनाएँ जिसमे
गलती पर "मैं" और उपलब्धि पर "हम" आये...
अपनी गलती पर जुबाँ पर सॉरी आए
औरों की भूलों पर " कोई बात नहीं' आए.।
हम सब में कहीं न कहीं
एक इंजीनियर छुपा है...
आओ उस इंजीनियर से...
ये जीवन पथ सुधरवाएँ...
प्यार का उपवन बनवाएँ...
जीवन सँवराएँ...