Last modified on 5 सितम्बर 2011, at 14:06

कोई झाँके / रमेश तैलंग

कोई झाँके हमारे मन में ज़रा
तो ख़ज़ाने मिलें ।
खिलखिलाती हँसी,
मीठे गाने मिलें ।

हम भी चाहें कोई हमसे बात करे
धूप घरमें हमारे कुलाँचें भरे
चलो ज़्यादा नहीं
थोड़ी देर को ही
हमें शैतानियों के बहाने मिलें ।

इन किताबों से भी
थोड़ी फुरसत मिले,
भूले-भटके कभी
प्यारा-सा ख़त मिले
जिसे पढ़कर नई आस
हममें जगे,
ज़िन्दगी को हमारी भी माने मिलें ।