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कोई डाकिया आज / लीलाधर मंडलोई

देह पर डूबते रंग उदास हैं
कि छिपा रहा सूर्य बादलों की ओट में

देह पर अनमनी पत्तियाँ उदास हैं
कि दुबकी रहीं चिड़ियाँ शिशिर कोहरे में

कोई गीत नहीं गाया गया
ढलती हुई यह सांझ उदास है
कि नहीं आया कोई डाकिया आज

और इस तरह नहीं पहुँची कोई चिट्ठी घर से आज फिर