कोई तो बात है बाक़ी ग़रीबख़ानों में ।
वगरना ज़िल्ले-इलाही और इन मकानों में ।
मुहाजिरों को पता है अजाब ऐ दरबदरी,
हयात काटनी पड़ती है शामियानों में ।
कोई तो बात है बाक़ी ग़रीबख़ानों में ।
वगरना ज़िल्ले-इलाही और इन मकानों में ।
मुहाजिरों को पता है अजाब ऐ दरबदरी,
हयात काटनी पड़ती है शामियानों में ।