Last modified on 13 नवम्बर 2013, at 12:50

कोई तो बात है बाक़ी ग़रीबख़ानों में / हसीब सोज़

कोई तो बात है बाक़ी ग़रीबख़ानों में ।
वगरना ज़िल्ले-इलाही और इन मकानों में ।

मुहाजिरों को पता है अजाब ऐ दरबदरी,
हयात काटनी पड़ती है शामियानों में ।