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कोई पाजेब सी बजी छत पर / राम नारायण मीणा "हलधर"

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कोई पाजेब सी बजी छत पर
रात भर चाँदनी हंसी छत पर

नींद ने आँख से बग़ावत की
मोगरे की कली खिली छत पर

लाख तारे हज़ार जुगनू हैं
बस मेरे चाँद की कमी छत पर

मोर के पाँव में बंधे घुंघरू
आपकी ज़ुल्फ़ जब खुली छत पर

रात क्या बारिशें थीं बेमौसम
गुल के रुखसार पे नमी छत पर

धड़कनें 'कहरवा' हुई दिल की
नैन की बांसुरी बजी छत पर