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कोई बरसन लागी काली बादली! / हरियाणवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कोई बरसन लागी काली बादली !

"डौलै तै डौलै, हालीड़ा, मैं फिरी

मन्ने किते न पाया थारा खेत ।"

बरसन लागी काली बादली !

"कोई चार बुलदांका, हालीड़ा, नीरना

दोए जणिएँ की छाक !"

बरसन लागी काली बादली !

"कितरज बोया, हालीड़ा, बाजरा ?

कोई कितरज बोई जवार ?"

बरसन लागी काली बादली !

"थलियाँ तै बोया, गोरी धन, बाजरा,

कोई डेराँ बोई जवार"

बरसन लागी काली बादली !


भावार्थ


--'देखो, काली बदली बरसने लगी है । "अजी ओ किसान, मैं मेंड़-मेंड़ पर घूमी-फिरी, तुम्हारा खेत मुझे कहीं

नहीं मिला ।" और काली बदली बरसने लगी है । " चार बैलों के लिए मैं भूसा लाई हूँ, दो आदमियों के पीने

लायक छाछ ।" और काली बदली यह बरसने लगी है ।

--"गोरी धन, ज़रा किसी ऊँची मेड़ पर चढ़ कर निहारो, मेरे गोरे बैल के गले में बड़ी घंटी भी तो बज रही है ।"

फिर काली बदली बरसने लगी है ।

--"अजी ओ किसान, किस तरफ़ तुमने बाजरा बोया है ? और कहाँ बोई है जवार ?" काली बदली बरसने लगी

है ।

--"गोरी धन, ऊपर के खेत में बाजरा बोया है और्नीचे के खेत में जवार ।"और काली बदली बरसने रही है ।'