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कोई बात नहीं ! / नीरज दइया

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बहुत पुरानी हो गई
फिर भी अपनी मुस्कान लिए
दीवार पर सजी है-
तश्वीर पिताजी की।

सुबह-सवेरे वे रोज
भरते हैं मुझ में नया जीवन
घर से निकते समय देखता हूं उन्हें
जीवन की भागा-दौड़ में
सोचता हूं- इस रविवार को
तश्वीर साफ करूंगा।

काफी महीने हो गए
वह रविवार नहीं आया,
मैं ग्लानि से भरता हूं
फिर भी दीवार पर-
तश्वीर में पिताजी
मुस्कान लिए कहते हैं-
कोई बात नहीं !