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"कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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हमको तो डर ही क्या हैं, उन्हींको हँसेंगे लोग
 
हमको तो डर ही क्या हैं, उन्हींको हँसेंगे लोग
यह ज़िन्दगी का साज़ कही बेसुरा न हो
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यह ज़िन्दगी का साज़ कहीं बेसुरा न हो
  
 
पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार
 
पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार

01:51, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो
मुमकिन नहीं कि उसको हमारा पता न हो

दिल का कभी हमारे तड़पना तो देखिये
जिस वक़्त इसके पास कोई दूसरा न हो

हमको तो डर ही क्या हैं, उन्हींको हँसेंगे लोग
यह ज़िन्दगी का साज़ कहीं बेसुरा न हो

पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार
शायद लिखा हो आपने शायद लिखा न हो

काँटों से यों न जाइए आँचल छुड़ाके आज
रुकिए कि एक गुलाब भी उनमें खिला न हो