कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं।
सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नहीं॥
इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल।
मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नहीं॥
कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं।
सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नहीं॥
इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल।
मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नहीं॥