Last modified on 27 अक्टूबर 2012, at 23:34

कोई यक्ष था / कालिदास

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 27 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  कोई यक्ष था

कश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणा स्‍वाधिकारात्‍प्रमत:
     शापेनास्‍तग्‍ड:मितमहिमा वर्षभोग्‍येण भर्तु:।
यक्षश्‍चक्रे जनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु
     स्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।

कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान
हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि
वर्ष-भर पत्‍नी का भारी विरह सहो। इससे
उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के
आश्रमों में बस्‍ती बनाई जहाँ घने छायादार
पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्‍नानों द्वारा
पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।