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कोई साया न शजर याद आया / राशिद हामिदी

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कोई साया न शजर याद आया
थक गए पाँव तो घर याद आया

खिल उठे फूल से सहराओं में
फिर वो फ़िरदौस-ए-नज़र याद आया

फिर मेरे पाँव में ज़ंजीर पड़ी
फिर तेरा हुक्म-ए-सफ़र याद आया

लौट जाने को बहुत दिल मचला
क्या पस-ए-गर्द-ए-सफ़र याद आया

सारी उम्मीदों ने दम तोड़ दिया
नख़्ल-ए-बे-बर्ग-ओ-समर याद आया

लाख चाहा था के वो चश्म-ग़ज़ाल
फिर न याद आए मगर याद आया

ख़्वाब और आलम-ए-बे-दारी में
रेत पर रेत का घर याद आया

मर्सिया दिन का लिखा था ‘राशिद’
शब को उनवान-ए-सहर याद आया