भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ / खड़ी बोली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:01, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=खड़ी बोली }} <poem> कोऊ दिन उ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ
बलम तोहे ऐसा मारूँगी
ऐसा मारूँगी बलम तोहे ऐसा मारूँगी

चकला मारूँ, बेलन मारूँ, फुँकनी मारूँगी
जो बालम तेरी मैया बचावै
वाकी चुटिया उखाड़ूँगी

थाली मारूँ, कटोरी मारूँ, चम्मच मारूँगी
जो बालम तेरी बहना बचावै
वाकी चुनरी फाड़ूंगी

लाठी मारूँ डंडा मारूँ थप्पड़ मारूँगी
जो बालम तेरो भैया बचावै
वाकी मूँछे उखाड़ूँगी