भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोऊ विधि मोहन का बन जाऊं /शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 24 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोउ विधि मोहन का बन जाऊँ ।
मोहन मेरा मैं मोहन का, प्रेम से गुण नित गाऊँ ।
प्रेम नगर में उनके बस कर, उनसे दिल बहलाऊँ ।
प्रेम पंथ की गली -गली में, चलत चलत थक जाऊँ ।
मारग सरल बतादो आ कर, पग-पग पर घबराऊँ ।
उनके संग अंग सब राचूँ, निशदिन नेह बढ़ाऊँ ।
प्रकट दृष्टि में आवत नाहीं, कैसे करके पाऊँ ।
शिवदीन दया कर आजा मोहन, भव में मैं भरमाऊँ ।
नाव पुरानी भवसागर से , कैसे पार लगाऊँ ।