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कोका कोला और कोको फ्रिआ / अशोक कुमार पाण्डेय / मार्टिन एस्पादा

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अपने पारिवारिक घर
प्यूरेटो रिको की अपनी पहली यात्रा में
वह गदबदा लड़का इस टेबल से उस टेबल
मुँह बाए भटकता रहा

हर टेबल पर कोई ताई-दादी
ठंड़े दागदार हाथों से इशारा करतीं कोका कोला के गिलास की जानिब
उनमें से एक ने तो अपनी स्मृति भर
चालीस के दशक का कोका कोला का एक विज्ञापन गीत भी सुनाया अंग्रेजी में
वह चुपचाप पीता रहा हालाँकि वह ऊब चुका था
ब्रुकलिन के सोडा फाउंटेनों के
इस परिचित पेय से

फिर, समुद्र के किनारे
उस गदबदे लड़के ने मुॅँह खोला कोको फ्रिओ के लिए
ठंढ़ाया नारियल ऊपर छीला हुआ चाकू से कि उससे दूध खींच सके स्ट्रा
लड़के ने उस हरे खोखल को मुँह से लगाया
और नारियल का दूध टपक आया उसकी ठोड़ी तक
अचानक प्यूरेटो रिको न कोका कोला था न बु्रकलिन
और वह भी नहीं

वर्षों बाद तलक वह लड़का अचम्भित रहा एक ऐसे द्वीप पर
जहाँ लोग कोका कोला पीते थे
और एक परायी भाषा में दूसरे विश्वयुद्ध के दौर के
विज्ञापन गीत गाते थे
जबकि पेड़ों पर
दूध से भरे इतने सारे नारियल
गदबदाये और अनुछुए लदे रहते थे