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"कोठा / दामिनी" के अवतरणों में अंतर

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15:32, 2 मार्च 2015 के समय का अवतरण

उसने हर रात किसी की
सेज सजाई है,
फिर भी दुल्हन
किसी की नहीं बन पाई है।
कई बार उसकी हालत पर
इंसानियत ने नजर झुकाई है,
जब सुबह बाप ने और
शाम को बेटे ने उसकी देह
अपने नीचे सजाई है।
हर रिश्ते को
लिहाज रिश्ता बनाता है,
इन कोठों पर
हर रिश्ते का लिहाज टूट जाता है।
किसी नौजवान को ‘ट्रेंड’ करने में
कोई बूढ़ी तवायफ
अपनी देह नुचवाती है,
तब कहीं जा के वो उस दिन
अपने पेट की आग बुझा पाती है।
ढलते-मसले जिस्म का
खरीदार मुश्किल से मिलता है,
ये जिस्मों का कारोबार
जवानी तलक ही चलता है।
वो वेश्या मौत से पहले ही
दहशत से मर जाती है,
जिसे अपने बालों में सफेदी
और चेहरे पे झुर्रियां नजर आती है,
बिन मौत आए सचमुच मरने का
हौसला भी कम ही जुटा पाती हैं,
इसीलिए इन कोठों पर अक्सर
मांएं ही बेटियों की
दलाल भी नजर आती हैं।