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कोड / एन. मनोहर प्रसाद

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मैं चाहता हूँ एक पूर्णविराम लगाना।
चहुँ और फैली समस्याओं पर—
लेकिन सब हैं जो समयातीत रहस्य!
अन्तहीन असीम पीड़ाओं का सातत्य :
मैं बहाता रहता हूँ आँसू कुछ शान्ति की आशा में;
कम से कम अस्थायी विराम त्रास
क्षणिक दम भरने भर मिले समय,
क्या हमारे जैसे लोगों या समाजों के लिए कहीं है कोई आशा?