भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोना बाँचत अपन मूल / पंकज कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:33, 29 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMai...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मध्य भारतक सघन बोनमे
बेगरि समयक काटल जा रहल
एकटा नमहर आ झमटगर दुर्लभ गाछ

जे अदौसँ ओहिना सोझ ठाढ़ छल
विश्वासक जड़ि पर
जेना अपन समृद्ध सभ्यता आ संस्कृति
जाहि बल बुते ठाढ़ छी हमरा लोकनि आइ धरि
आ कए रहलहुँ अछि गुमान पुरखासँ भेटल
एहि सभसँ पैघ सम्पति पर

ओहि गाछक पेटा लगसँ
ऊर्ध्वाधर निर्वातमे
भए रहल अछि कम्पन
किएक ओकरा तानल
आ तीरल गेल अछि
एनमेन ओहिना
जेना अपन अस्तित्वक मूलकेँ
तानल आ नमारल गेलासँ
थरथर कापि रहल छैक समाजक धड़

चिड़ै-चुनमुनी, खेचर आ शकुन्त सभ
टकटकी लगाओने देखि रहल
ओहि झमटगर गाछकेँ
जतए आइ धरि छल ओकर खोता

आब उजड़ि तँ गेल ओ सभटा
मुदा एकटा धहगर अखिआससँ
सुनि रहलहुँ अपन श्रोत्रमे
एखनहुँ विहगक बड़बड़ेनाए क' अबाज

ओहिना जेना स्वप्नमे आबि
हमर पुरखा
नीनसँ जगाक'
पुछि रहलाह अछि
कतेको प्रश्न?

सभ बेर भ' जाइत छी
हम निरुत्तर
अहीँ जकाँ।