भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोयल चुप है / शरद कोकास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:33, 13 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> गाँव की अमराई में क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाँव की अमराई में कूकती है कोयल
चुप हो जाती है अचानक कूकते हुए

कोयल की चुप्पी में आती है सुनाई
बंजर खेतों की मिट्टी की सूखी सरसराहट
किसी किसान की आखरी चीख़
खलिहानों के खालीपन का सन्नाटा
चरागाहों के पीलेपन का बेबस उजाड़

बहुत देर की नहीं है यह चुप्पी फिर भी
इसमें किसी मज़दूर के अपमान का सूनापन है
एक आवाज़ है यातना की

घुटन है इतिहास की गुफाओं से आती हुई

पेड़ के नीचे बैठा है एक बच्चा
कोरी स्लेट पर लिखते हुए
आम का ’आ’
वह जानता है
अभी कुछ देर में
उसका लिखा मिटा दिया जाएगा

उसके हाथों से
जो भाग्य के लिखे को
अमिट समझता है ।