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कोयल धीरे / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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री बसंत की पगली कोयल
धीरे-धीरे बोल।
नौका तट से बंधी हुई है,
प्यार भरा दिल खुला हुआ है।
खिलती कली मुसक के कहती,
लाज के बंधन खोल।
री बसंत की पगली कोयल
धीरे-धीरे बोल।
ब्योम-विपिन में सजी हुई है
तारों की बारात।
छुपकर अवनी को देता है
सपना कोई हठात।
व्यथित हृदय चंदा है कहता
पीड़ा मेरी लो मोल।
री बसंत की पगली कोयल
धीरे-धीरे बोल।
गीत मेरा यह प्रेम का, छोटा सा उपहार।
याद इसे कर लेना, यद्यापि फागुन के दिन चार।
मैं तो रूदन गीत गाने को,
स्वर में मधु मत घोल।
री बसंत की पगली कोयल
धीरे-धीरे बोल।