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कोरा कागज / प्रदीप प्रभात

कोरा कागज पर लिखी केॅ
दर्द रोॅ फरियाद करै छी।
सच पूँछोॅ तेॅ कागज केॅ
बल्हौं बरबाद करै छी।
निरदैंया छै ई जालिम सरकार हमरोॅ,
धुरी-धुरी न्याय रॉे हम्मेॅ मांग करै छी।
कातिलियाना हमला होलोॅ हमरोॅ जानोॅ पर,
लुट मचलोॅ छै गॉव शहर सब्भैं पर।
कखनी मचलोॅ छै गॉव शहर सब्भैं पर।
कखनी छिनाय जैत्तोॅ आबरू आरो इज्जत,
इज्जत बचाय बारतें हम्मेॅ भागी रहलोॅ छी।
गॉव आरो शहरों मेॅ गुण्डा के राज छै,
आजकल निर्दोषोॅ केॅ डराना तेॅ आम बात छै।