भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
बारह संगी दीप, अन्हरिया काटि रहल अछि।को करू ठीके टुटल सितार हम्मरजल्दी बारह दीप अन्हरिया काटि रहल अछि।मानल तैयो कि रहलहुँ गाबि हम अन्हार ने बाहरकेर, भीतरकेरगीत !नीड़हीन विहंग सत्ते भए गेलहुँ हम।विश्व-संगरमे एनाकए अनेरे असगर भेलहुँ हम।करू करबाले जते हम,मरू अनका ले जते हम।मानल ई अन्हार ने क्षणकेरमुदा निज लाभक विचारें की केलहुँ हम ??जेना जे हो, जीवनकेर।नहि कहब जे फुटल अछि कप्पार हम्मर।मानल एहि अन्हारक ओना लागए जे कि भए गेल हमर जीवन तीत।सोचल जे लोको बूझि लेतै कालक्रमसँ सत्य की अछि किछु ओर,रक्त-छोर नहि।तर्पण जे करै छी ताहि पाछू तथ्य की अछि।मानि लेल मुद देखी आह ! जे हमरा जीवनमे आओत गऽ अब भोर नहि।अछि जरि रहल संसार हम्मर।तैयो लिखल ‘भोरूकवा’ ई तँ मानि लेलह तोंजािर निज घर घूर तापी,ठीके छी हेहर मती !मरितहुँ काल ने आश गमाओल जानि लेलह तों।की करू ठीके टुटल सितार हम्मर,तैयो बारह दीप, ज्ञान ओना जे अन्त हमर बस माटि रहल अछि।कि रहलहुँ गाबि हम ई गीत।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits