भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

को करू ठीके टुटल सितार हम्मर / धीरेन्द्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:24, 23 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र |संग्रह=करूणा भरल ई गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारह संगी दीप, अन्हरिया काटि रहल अछि।
जल्दी बारह दीप अन्हरिया काटि रहल अछि।
मानल ई अन्हार ने बाहरकेर, भीतरकेर,
मानल ई अन्हार ने क्षणकेर, जीवनकेर।
मानल एहि अन्हारक अछि किछु ओर-छोर नहि।
मानि लेल जे हमरा जीवनमे आओत गऽ अब भोर नहि।
तैयो लिखल ‘भोरूकवा’ ई तँ मानि लेलह तों,
मरितहुँ काल ने आश गमाओल जानि लेलह तों।
तैयो बारह दीप, ज्ञान ओना जे अन्त हमर बस माटि रहल अछि।