भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

को रंग मस्ती में झूमै हेमंत / कुमार संभव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 12 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार संभव |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सखी, मोर पिन्ही चिकना फूलोॅ के
को रंग मस्ती में झूमै हेमंत।

तेल फूलैेल लगैनें, मनहर रूप सजैने
मंजुल केशर के टीका माथा पर लगैने,
खंजन मृग मीन रं अंजन धारण करने
काम रूप में सजलोॅ रति केॅ तरसैनें।
प्रेमोॅ सें भरलोॅ छै दिग-दिगन्त
को रंग मस्ती में झूमै हेमंत।

विविध फूलोॅ के माला में शोभैं
कुंकुम रोली-चंदन लगलोॅ माथें लोभै,
मुहोॅ पर चानोॅ के तेज अति मन भावै
हल्दी के रंगोॅ से रंगलोॅ, रहि-रहि मुस्काबै।
शोभा के नै छै कोनो अंत
को रंग मस्ती में झूमै हेमंत।