http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%8F_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5_/_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&feed=atom&action=historyकौए की काँव / प्रमोद कुमार तिवारी - अवतरण इतिहास2024-03-29T05:41:11Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%8F_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5_/_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=182256&oldid=prevGayatri Gupta: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार तिवारी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया2014-08-29T11:54:03Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार तिवारी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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{{KKRachna<br />
|रचनाकार=प्रमोद कुमार तिवारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
काँव... काँव... काँव...<br />
कौए की काँव<br />
आँगन में रखी<br />
दूध-भात की कटोरी<br />
नीम की डाल पर बैठा<br />
गिरिधर पंडित की झिड़की<br />
और शोभा काकी की आशीष<br />
सुनता, चोंच खुजलाता, सिर हिलाता<br />
घुप्प काला कौआ<br />
<br />
अपनी मुंडेर पर<br />
बिठाने की जिद में<br />
कौए को<br />
सब जगह से उड़ाते बच्चे<br />
<br />
काँव... काँव... काँव...<br />
अपने हिस्से का प्रसाद खिलाया<br />
शोख रमवतिया ने<br />
चुपके से<br />
रंगे हाथ पकड़ी गईं<br />
रामदई काकी<br />
सोना से चोंच मढ़वाने की रिश्वत देते<br />
<br />
काँव... काँव... काँव...<br />
काँव छा गई चमक बन कर<br />
पाँच साल से नइहर की राह देखती<br />
अन्नू की भाभी के चेहरे पर<br />
काँव समा गई<br />
मजबूती बन कर<br />
कुबड़ी दादी की लाठी में<br />
काँव के दम पर झिड़क दिया<br />
बुधिया चाची ने<br />
द्वार आए साहूकार को<br />
परंतु गहरा गया<br />
मेजर चाचा के बाबूजी की<br />
आँखों का सूनापन<br />
<br />
काँव... काँव... काँव...<br />
कौए की काँव<br />
काँव नहीं डोर<br />
जिससे बँधे थे<br />
पंद्रह साल से बेटे की राह देखती<br />
मलती दादी के प्रान<br />
काँव नहीं धुन<br />
जो नचाती थी दिलों को<br />
और रोप देती थी<br />
आँखों में सपना<br />
सपना<br />
जिसमें 'देह की महक' से<br />
'नए बैल की घंटी की गूँज' तक<br />
समाई होती थी<br />
जिसमें<br />
'छोनू की लेलगाली'<br />
मोनी की गुड़िया<br />
और माला की लाल गोटेदार साड़ी<br />
चमकती थी.<br />
<br />
काँव... काँव... काँव...<br />
काँव नहीं 'खिड़की'<br />
जिसमें से दिखता था<br />
चुन्नू को शहर का स्कूल<br />
रामरती को पछांही गाय<br />
और गोपी काका को<br />
बिटिया का पीला हाथ.<br />
काँव में धड़कती थी<br />
एक पूरी की पूरी दुनिया<br />
जो सरकती जा रही थी<br />
मेरे बौद्धिक हाथों से.<br />
</poem></div>Gayatri Gupta