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कौओं को सम्मान / हरि नारायण सिंह 'हरि'

कौओं को सम्मान और कोयल को
मिलते ताने।
सिंहासन पर उल्लू बैठा, हंसा चुगते दाने।

समय बड़ा विकराल हुआ है, कुछ भी समझ न आता,
साधु-पुरुष को दस्यु पुरुष है रह-रहकर धमकाता।
उसकी ही चलती समाज में, वे जो कहते मानें।
कौओं को सम्मान और कोयल को
मिलते ताने।

जायेगा यह देश किधर राजा को पता नहीं है,
जानकार को घर बैठाया क्या यह खता नहीं है?
दिव्य अंग वाले बन बैठे, जिसको कहते काने!
कौओं को सम्मान और कोयल को
मिलते ताने।

विवश प्रजा है लोकतंत्र का अद्भुत् यहाँ नजारा,
लाठीवाले भैंस ले गये, उनका ही धन सारा।
शेष बचे का क्या कब होगा, ऊपर वाला जाने।
कौओं को सम्मान और कोयल को
मिलते ताने।