Last modified on 27 अप्रैल 2017, at 15:31

कौने बाबा घर साँझ सँझाय गेलै / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह-संस्कार संपन्न होने के तीन-चार दिन पहले से स्त्रियाँ ब्रह्ममुहूर्त में और संध्या समय गृहदेवता के घर के सामने खड़ी होकर देवता की आराधना में इस गीत को गाती हैं।

इसमें अपने पुरखों को याद करते हुए घर में दीपक जलाने का उल्लेख है।

कौने बाबा घर साँझ सँझाय<ref>संध्या होना</ref> गेलै, कौने आमाँ दीप लेसु हे।
कवन बाबा घर साँझ सँझाय गेलै, ऐहब<ref>सौभाग्यवती</ref> आमाँ दीप लेसु हे॥1॥
कौने भैया घर साँझ सँझाय गेलै, ऐहब आमाँ दीप लेसु हे।
कवन भैया घर साँझ सँझाय गेलै, ऐहब आमाँ दीप लेसु हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>