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कौन हैं, हम तुम / पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी

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शब्द की यात्रा में
निकले कौन हैं हम तुम?
समय का परिवेश
फिर भी मौन हैं हम तुम
शब्द किसी के
गुनगुनाते रहे भौरें-से
फिर भी मौन हैं हम तुम

शब्द किसी के
चमचमाते भोर के तारे-से
फिर भी मौन हैं हम तुम
शब्द की छाँव में
पले-बढ़े
फिर भी मौन हैं हम तुम

शब्द किसी के
थिरकते रहे वीणा के झंकृत तार-से
फिर भी मौन हैं हम तुम
शब्द किसी के
सहलाते रहे कनुप्रिया की मनुहार-से
फिर भी मौन हैं हम तुम

शब्द के रचाव में
सजे-सँवरे
फिर भी मौन हैं हम तुम
शब्द किसी के
इठलाते रहे रंग-बिरंगी तितली-से
फिर भी मौन हैं हम तुम

शब्द किसी के
धमकाते रहे कड़कती बिजली-से
फिर भी मौन हैं हम तुम
शब्द के बिखराव में
सँभले-गिरे
बुलबुलाते रहे बीसवीं सदी-से
फिर भी मौन हैं हम तुम

प्रश्न यही है आज
यक्ष-सा मेरे सामने
बोलो तो कौन हैं हम तुम
देव दानव मानव
हम तुम
बोलो तो कौन हैं हम तुम?