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कौशल्या / सातमोॅ खण्ड / विद्या रानी

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कैकेयी हठ ठानवे करनें छेलै,
रामो भी तुरते तैयार होय गेलै ।
कोय विरोध नै करलकै वनवास केॅ,
सभै जरैलकै मनोॅ के आस के ।

सुमित्रा बदहवास कौशल्या लग अयली,
दुखोॅ में डुबली देखी, आपनो डुबी गेली ।
हे दीदी केना करि रहबै हमरा सिनी,
औचक्के जे वन जाय रहलोॅ छै बच्चा सिनी !

गल्ला मिली रोवेॅ लागली कौशल्या,
दुखो न जेना देह धरी लेलकै ।
प्रलाप, विलाप, संलाप गंूजे लागलै,
करूण क्रन्दन करेॅ लागली कौशल्या ।

कैकेयी कन दशरथ नें सुमंत केॅ भेजलकै
जाय केॅ बढ़िया रंग रथ लै आनोॅ
कुछु दूर तांय पहुंचाय आवोॅ
रास्ता में लौटै लेॅ समझावोॅ ।

सभै वन गेलै सुध अयलै राजा के,
कौशल्या कैकेयी कन चली देलकै ।
मूच्र्छित राजा के देखी केॅ समझलै,
सूर्य कुल रोॅ सूरज डूबलेॅ चललै ।

राजा के लै सेवक सनि संग में,
रानी चलली आपनोॅ भवन में ।
सुमित्रा वही आवि गेलै,
मिली केॅ सेवा करेॅ लागलै ।

सुमंत जखनी खाली हाथ ऐलै,
कौशल्या नें विलाप करलकै ।
हमरोॅ जंगल में पहुंचावोॅ,
नै तेॅ परलोक पठावोॅ ।

एना करला सें की होतै,
राम लखन जहाँ चल्लोॅ गेलै ।
हुनकोॅ चिन्ता नै करोॅ रानी,
महाराज के धियान धरोॅ रानी ।

कौशल्या मन हलका होलै,
मतरकि संताप कहां जैतियै ।
हे दयालु धर्मात्मा महाराज ।
केना करलौ तोहें ऐन्होॅ काज ।

निरपराध सुत केॅ वन भेजी देलौ,
सीता लछमन साथ करी देलौ ।
हमरोॅ सुन्दर बच्चा सिनी केॅ
चैदह बरस वनोॅ में भेजलौ ।

तोहें तेॅ हमरोॅ नहिये छिकौ,
पुत्रा सिनी केॅ दूर भेजिये देलौ !
भाय बन्धु छै आपनै दूर,
कहोॅ तोहें हमरोॅ की कसूर ।

नाशी देलौ तोंहें, प्रयोध्या केॅ,
मंत्राी सहित सभै प्रजा केॅ ।
सबकेॅ सब तेॅ करवे करलौ
आपनोॅ भी इ हाल बनैलौ ।

आरू चैदह बरसोॅ के बाद,
भरत गद्दी छोड़तै की,
आरू जौ वैंने छोड़ियो देतै,
राम ग्रहण करतै की ?

जेना सिंह नै खाय छै,
दोसरोॅ जन्तु के मारलोॅ शिकार,
वैन्हें कहियो राम नै करतै,
भरत भोगलोॅ राज स्वीकार ।

हमरोॅ दशा तोहें देखौ राजा,
पति पुत्रा आरू भ्रात समाजा ।
कोय न हमरा पास रहलै,
दुखी असहाय बनी गेलियै अबला ।

दशरथ मन पड़लै आघात,
समझावेॅ लगलै कही ढेरी बात ।
आपनोॅ कठोर वचन लेॅ रानी
छमा मांगलकै जोड़ि केॅ पाणी ।

की कहियो राजा मोॅन नै थिर छै,
वनवासोॅ केरोॅ दुख कत्तेॅ चिर छै ।
मन नै समझै छै काल कुकाल,
जरलोॅ मन निकालै छै झरकलोॅ बात ।

क्षमा याचना सें शान्ति पैलकै,
कुछु छनोॅ लेॅ सुतिये गेलै,
अधराति जबेॅ टुटलोॅ नींद
होलोॅ राजा दुखोॅ के अधीन ।

हे राम, हे राम कही कानें लगलै,
कौशल्या, सुमित्रा सब जगी गेलै,
राम बिना जीना छै बेकार
केना जीवोॅ होय केॅ लाचार !

हमरोॅ प्रेम धन नै रहेॅ पारलै
दुख देलकै जीवन में हारलै ।
राम बिना केना जीयेॅ पारबोॅ,
हृदय शूल नै सहेॅ पारबोॅ ।

उ राति विकराल होलोॅ छेलै,
बड़का ठो के रात होलोॅ छेलै,
केना कटतै इ रंग रात,
राजा के परान लै जइतै रात ।

पुत्रा वियोग के दुख पीवी केॅ,
पुत्रा वधू संग में भेजी के ।
धीरज पकड़ी बैठली कौशल्या,
समय अनुसार बोलली कौशल्या ।

जे होना छेलै से होइये गेलै,
ओकरोॅ चरचा सें कुछु लाभे नै छै ।
होलै वहीं जे करलकै विधाता,
एना बोललकी रामोॅ के माता ।

रानी राजा दशरथ समझावै,
एतना कातर नै होना छै,
राम बिना दुखोॅ के अंत नै छै,
मतरकि संकट में धीरज नै खोना छै ।

तोहें अयोध्या के छौ कर्णधार,
घबडैबोॅ तेॅ केना हेावौ पार ।
राम वियोग न सभै के झरकैलकै,
जीवजन्तु नर नारी सब कानै छै ।

जेना तोहें छौ सिरमौर,
वैन्हें काम करौ हे नाथ ।
बच्चे में मुनि संग गेलै,
अबेॅ तेॅ बड़ोॅ होय गेलै नाथ ।

चैदह बरस तेॅ दिन कत्तेॅ होय छै,
तुरत्तेॅ छन में बितियै जइतै ।
लौटी ऐतौं सीता आरू राम,
पूरा करथौं तोरोॅ मन काम ।

मने मन सोचै कौशल्या,
राम जन्म पर हिरण जे मरलोॅ छेलै ।
हिरणी खाल मांगे अयलोॅ छेलै ।
आपनोॅ छौना के फुसलैवोॅ ।

पिता तेॅ ओकरोॅ मरिये गेलै,
खाल देखाय ओकरा समझैवे ।
तोरोॅ पिता अयलोॅ राजा के काम,
इहां राखलोॅ छै हुनकोॅ चाम ।

हम्में नै ओकरा देनें छेलियै,
चाम सें डफली बनतै कहनें छेलियै ।
हिरणी चल्लोॅ गेलोॅ छेलै उदास,
अपने छौना सिनी के पास ।

शायद ओकरे सराप लगलोॅ छै
सब कुछ रहते राजा जाय रहलोॅ छै ।
हे भगवान केना समझावौं,
जेकरा सें राजा धीर धरावौं,

अयोध्या जहाज छै तों कर्णधार,
परिजन, पुरजन सब छै यात्राी परिवार ।
जौ तोहें छोड़लोॅ धीरज के धरम,
सभे मिल डुबतै नै छै भरम ।

कौशल्या के वचन सुनि केॅ,
आंख उधारि राजा न देखलकै ।
तड़पलोॅ मछरी में जेना पानी पड़लोॅ,
दशरथ के संताप हरलकै ।

राजा केन्हों उठी केॅ बैइलै,
राम, लखन, सीता के खोजलकै,
आगू देखलकै कौशल्या रानी,
हुनका सुनैलकोॅ सभै कहानी ।

हमरा शराप अंध तपस्वी के लगलै,
जेकरोॅ पुत्रा के मारलेॅ छेलियौ ।
श्रवण कुमार केरोॅ माता पिता
दुनु के अनाथ बनैले छेलियै ।

कोशल्या सोचै दू बात,
हम्में सोचै छी हिरणी के शराप ।
इनकोॅ कथा तेॅ दोसरोॅ छै,
कुकाल केॅ खबर दै रहलोॅ छै ।

की कहियै की समझै छै,
आपनोॅ मन तेॅ पत्थर बनैलियै ।
हिनका केना दियै संतोष,
पुत्रा वियोग सहै केरोॅ होश ।

काल केना कुकाल होय छै,
लोग सिनी समझै ने पारै छै ।
राजा विह्नल रानी लाचार,
दुख सहै लेॅ छेलै तैयार ।

आपनोॅ हाथोॅ मं कछु ने छै,
जेना विधि राखतै वैने रहना छै ।
धीरज धरि केॅ काम करना छै,
थिर राखि केॅ दुख सहना छै ।

शोक जेना सशरीर अयलोॅ छेलै,
राजभवन में पसरी गेलोॅ छेलै ।
दू पटरानी साढ़े तीन सौ रानी,
सब मिली केॅ कौलत करे छेलै ।

राम विवाह मं राजा तड़पै छेलै,
घोटी-घोटी केॅ पानी पीयै छेलै ।
राम हे राम राम हे राम करी,
हुनकोॅ परान पखेरू उड़ि गेलै ।

कोढ़ में जेना खाज होय छै,
आरू नीम चढ़लोॅ करेला ।
पुत्रा वियोग सें उबारलो ने छेलै,
विधवा बनी केॅ बैठली कौशल्या ।

पुत्रा लै कानौ की पति लेॅ,
समझै ने पावै छेलै कौशल्या ।
दाँव पेंच राजनीति छल प्रपंच,
कुछु नै जाने छेलै कौशल्या ।

सभै तेॅ वियोग में छेलै,
के केकरा समझावेॅ पारै ।
अयोध्या जहाज डुबिये गेलोॅ छेलै,
के परान बचावेॅ पारै ।

भवन आरू बाहर सौसें अयोध्या,
में कोहराम मचिये गेलै ।
दू दुरघटना केरोॅ कारण,
कैकेयी तेॅ बनिये गेलै ।

पुत्रा मोह की राज रोॅ लालच,
के ओकरोॅ मति मारले छेलै ।
काल गति नै समझेॅ पारलकै,
कैकेयी भी तेॅ हारलोॅ छेलै ।

केॅ कुबुद्धि कुकाल घेरने छेलै,
सभै केॅ विधवा बनाय देलकी।
हरलो भरलो सुखी राज में,
इ तेॅ आगिन लगाय देलकी।

गुरु वशिष्ठ परम ज्ञानी छेलोॅ,
काल कुकाल के पहचानै छेलोॅ।
हे रानी अबेॅ धीरज धरोॅ,
अन्त्येष्टि के तैयारी करोॅ।

भरत के मनोॅ सें आनोॅ बुलाय,
वेगि सें सुरथ दहु पढ़ाय।
ताँय ताँय नावोॅ में तेल भरोॅ,
राजा केरोॅ शव ओकरे में धरौ।

के करतियै इ सब काम,
सभै के छेलै होश गुड़ुम।
सुमंत भी मुच्र्छित छेलै,
सुधि हरण होय गेलोॅ छेलै ।

वशिठ कैन्हों करलको काम,
सेवक भरत के पास भेजलकोॅ ।
गुरुजी तोरा बुलै नें छिकों,
ओकरा यही संदेश पढ़ैलकोॅ ।

आरू कुछु नै बोलियो बात,
घबड़ाय जयतै दुनु भ्रात ।
इहाँ आवि सब देखवे करतय,
राम कृपा सें धीरज धरतय ।