भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौसानी में सुबह के चार चित्र-3 / सिद्धेश्वर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा में खुनक है
ठंड की
सूर्य की किरणों के साहचर्य में
खुल रही है
पेड़ों की ठिठुरी देह ।

मैं यहीं हूँ
इस अजगुत को देखता
संग है तुम्हारी आभा
बार -बार पुकारता है गेह ।