हवा में खुनक है
ठंड की
सूर्य की किरणों के साहचर्य में
खुल रही है
पेड़ों की ठिठुरी देह ।
मैं यहीं हूँ
इस अजगुत को देखता
संग है तुम्हारी आभा
बार -बार पुकारता है गेह ।
हवा में खुनक है
ठंड की
सूर्य की किरणों के साहचर्य में
खुल रही है
पेड़ों की ठिठुरी देह ।
मैं यहीं हूँ
इस अजगुत को देखता
संग है तुम्हारी आभा
बार -बार पुकारता है गेह ।