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क्य़ूँ नहीं हम भी / किरण मल्होत्रा

लफ़्ज़ मेरे
कह नहीं पाते
दिल की आवाज़
तुम भी नहीं
सुन सकते
दोनों की
अपनी-अपनी
मज़बूरियाँ हैं
पास होने पर भी
शायद इसलिए
रहती दूरियाँ हैं
बोल कुछ
अनकहे
क्यूँ नहीं
हम समझ पाते
या फिर कहीं
जानकर भी
अनजान बने रहते
अपने ही
ख़यालों में खोए
आवारा बादल की तरह
अपने ही आकाश में
भटकते रहते
एक गहरी बदली
बन कर
क्यूँ नहीं हम भी
कुछ पल के लिए
बरस पाते