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क्या-क्या होना बचा रहेगा / गिरिराज किराडू

Kavita Kosh से
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आप शायद जानते हों कि मैं आपके सामने वाले घर में रहती हूँ । आपने अक्सर हमें झगड़ते हुए सुना होगा । हमें आपके घर की शांति इतनी जानलेवा लगती है कि हम झगड़ने लगते हैं । सच मानिये हमारे झगडे की और कोई वज़ह नहीं होती । आपके सिवा झगड़ते हुए हम मुस्कुरा रहे होते हैं । हम अटकल करते हैं कि आप लोग हमारे घर से आ रहे शोर को ध्यान से सुनने की कोशिश कर रहे हैं । मैं कहती हूँ तुम बदल गए हो, वह कहता है तुम बदल गई हो । हम एक दूसरे के कुनबे और कबीले और तहज़ीब और मज़हब को भला-बुरा कहते हैं । बिलकुल ख़राब बातें करते हैं एक दूसरे के बारे में । मैं रोने लगती हूँ वो चीज़ें फेंकने लगता है । एक बार तो उसने मोबाइल दीवार से दे मारा और मैं उस पर ज़ोर से चिल्ला पडी । अगले दिन मैंने भी अपना मोबाइल दीवार पे दे मारा । आपके घर की शांति के चक्कर में अपना नुकसान कर बैठे पर आप लोग हैं कि कभी इधर झाँकते भी नहीं । एक बात साफ़-साफ़ सुन लीजिए रहिए मगन अपने में । आप जैसे लोगों के कारण ही ये दुनिया अब बहुत दिन नहीं बचने वाली ।