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क्या अंगारे और क्या शबनम / प्रेम भारद्वाज

क्या अंगारे और क्या शबनम
ठीक नहीं जब मन का मौसम

कुछ भी कह लो होता यह है
पूंजी चाबुक दुनिया टमटम

मजबूरी की थाप पड़ी तो
हारी आदर्शों की सरगम

मन को बेशक ग्रहण लगा था
बाहर से तो रक्खा चम-चम

कुछ भी कह लो होता यह है
पूंजी चाबुक दुनिया टमटम

इतने उत्पीड़न के चलते
आँचल बन जाता है परचम

शल्य चिकित्सा करनी होगी
काम नहीं आया है मरहम

प्रेम निभाना खेल नहीं है
देख लिए हैं सब के दमख़म