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क्या उसे इतना भा गया हूँ मैं / कांतिमोहन 'सोज़'

क्या उसे इतना भा गया हूँ मैं
बारहा क्यूँ छला गया हूँ मैं ।

कितना समझा है वो ख़ुदा जाने
यूँ तो सब कुछ सुना गया हूँ मैं ।

अब ख़ामोशी ही जेब देती है
इक खजाना था पा गया हूँ मैं ।

रौशनी की तो कह नहीं सकता
एक दिल था जला गया हूँ मैं ।

गर्द होता तो मान ही लेता
सारे आलम पे छा गया हूँ मैं ।

अब वही माँ है और वही बाबा
शाम की गोद आ गया हूँ मैं ।

सबके होठों पे सोज के चर्चे
क्या जहाँ से चला गया हूँ मैं ।