भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या कहा था तुमने / अनुराधा सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब समुद्र की
तरफ से आने वाली हवाएँ भी सूख गईं थीं
तो
कुछ कहा था तुमने
बदलते मौसम और सियासी मिजाज पर
बहुत कुछ कहते रहे थे
उस शाम
क्या कहा था अपनी बदलती फितरत पर?
क्या कहा था
जब जब मैंने सांस के साथ आँसू घुटके थे
और आवाज़ हुई थी उस घूँट की?
या शायद
चीखता हुआ कठफोड़वा गुज़रा था
हमारे सिरों के ऊपर से
मुझे आखिरी बार जाते देख क्या कहा था?
नारे लगाये थे तुमने
नामीबिया की औरतों पर होते
अत्याचारों के खिलाफ़
क्या कहा था तुमने
जब मेरी उम्मीद मर रही थी?
कुछ तो कहा था
मेरी टूटी चप्पल पर सहानुभूति से
क्या कहा था तुमने मेरी लहूलुहान
हिम्मत पर?