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क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता / सुरेन्द्र सुकुमार

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता।
दरदे-दिल अब सहा नहीं जाता।

सत्य ही में जिया हूँ मैं तो,
झूठ के संग जिया नहीं जाता।

यूँ तो सुन वो बेवफ़ा ही है,
बेवफ़ा पर कहा नहीं जाता।

देश क्या है एक फूटा घर है,
अब इस घर में रहा नहीं जाता।

मैं तो तिनका हूँ सुनो नदिया का,
धार के संग बहा नहीं जाता।