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क्या जुर्म हमारा है बता क्यों नहीं देते / 'हफ़ीज़' बनारसी

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क्या जुर्म हमारा है बता क्यों नहीं देते
मुजरिम हैं अगर हम तो सजा क्यों नहीं देते
 
तुम को तो बड़ा नाज़-ए-मसीहाई था यारो
बीमार है हर शख्स दवा क्यों नहीं देते

किस दश्त में गुम हो गए अहबाब हमारे
हम कान लगाये हैं सदा क्यों नहीं देते
 
कम ज़र्फ़ हैं जो पी के बहकते हैं सरे-बज़्म
मह्फ़िल से उन्हें आप उठा क्यों नहीं देते

क्यों हाथ में लरज़ा है तुम्हें खौफ़ है किस का
हम हर्फ़े-ग़लत हैं तो मिटा क्यों नहीं देते
 
कुछ लोग अभी इश्क़ में गुस्ताख़ बहुत हैं
आदाब-ए-वफ़ा उनको सिखा क्यों नहीं देते

नग़मा वही नग़मा है उतर जाए जो दिल में
दुनिया को 'हफ़ीज़' आप बता क्यों नहीं देते