भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्या तकल्लुफ करे ये कहने में / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
  
क्या तकल्लुफ़
+
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में  
करें ये कहने में  
+
 
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं  
 
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं  
  

10:27, 1 अगस्त 2010 का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें



क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र करके
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं