Last modified on 24 जुलाई 2016, at 12:15

क्या तुम सचमुच लौट आई हो / गीताश्री

क्या तुम सचमुच लौट आई हो मेरे पास,
पिछली सदी से,
तुम्हारे पास अब भी बचा है
उतना ही ताप मेरे लिए,
कि मैं नहीं बचा पाया अपने हिस्से की झोली,
जिसमें कभी तुम भर-भर कर देती थीं
अपनी हँसी सवेरे सवेरे...
डब्बे में रोज़ भर-भर कर देती थीं
अपना ढेर सारी चिन्ताएँ,
कि इन दिनों ख़ाली झोलियाँ हमेशा हवा से भरी होती हैं
और हँसी निष्कासित है अपने समय से।