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क्या बताऊँ ज़िन्दगी में किस क़दर तन्हा रहा / देवेश दीक्षित 'देव'

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क्या बताऊँ ज़िन्दगी में किस क़दर तनहा रहा,
काफिलों के साथ रहकर भी सफ़र तनहा रहा

हिज्र की रातें गुज़ारी मुद्ददतों से इस तरह,
याद की शम्अ जलायी रात भर तनहा रहा

अब किसी से दोस्ती होती नहीँ है इसलिये,
दोस्तों को आजमाकर वक़्त पर तनहा रहा

या खुदा पत्थर बना दिल के मेरे एहसास को,
आइने की शक्ल में तो उम्र भर तनहा रहा

आ गयीं जिस रोज़ यादें अपने माज़ी की अगर,
रात के खंडहर की मानिंद दिल जिगर तनहा रहा

दो दिलों के प्यार का अंजाम कुछ ऐसा हुआ,
हार कर मैं खुश रहा वो जीतकर तनहा रहा

'देव' उनके रूठने से रात गुज़री इस तरह,
नींद उनको भी न आयी मैं अगर तनहा रहा