भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,<br> उम्र भर किस-किस के हिस...)
 
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,<br>
+
{{KKGlobal}}
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।<br>
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
 +
}}
 +
<poem>
 +
क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
 +
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।
  
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत के साथ,<br>
+
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा उस शिद्दत <ref> अति,तनमन्यता</ref> के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया ।<br>
+
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया ।
  
कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म,<br>
+
कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचो-ख़म<ref> घुमाव-फिराव</ref>  
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया ।<br>
+
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया ।
  
शोहरतों की नज़्र कर दी शेर की मासूमियत,<br>
+
शोहरतों<ref> प्रसिद्धि </ref> की नज़्र<ref> भेंट</ref> कर दी शे’र की मासूमियत,
इस दीये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।<br>
+
इस दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।
  
चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,<br>
+
चंद जज़्बातों से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,
कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ।<br>
+
कैसा-कैसा जब्र<ref> अत्याचार</ref> अपने आप पर मैंने किया ।
  
शिद्दत: अति,<br>
+
 
पेचो-ख़म: घुमाव- फिराव,<br>
+
</poem>
नज़्र: भेंट, उपहार,<br>
+
{{KKMeaning}}
जब्र: ज़ोर-ज़बर्दस्ती ।<br>
+

10:43, 5 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।

तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा उस शिद्दत <ref> अति,तनमन्यता</ref> के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया ।

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचो-ख़म<ref> घुमाव-फिराव</ref>
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया ।

शोहरतों<ref> प्रसिद्धि </ref> की नज़्र<ref> भेंट</ref> कर दी शे’र की मासूमियत,
इस दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।

चंद जज़्बातों से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,
कैसा-कैसा जब्र<ref> अत्याचार</ref> अपने आप पर मैंने किया ।


 

शब्दार्थ
<references/>